उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में धनतेरस और दीपावली के त्यौहार पर चांदी की मछली की पूजा की प्राचीन परंपरा है. हमीरपुर जिले में दीपावली और धनतेरस आते ही चांदी की मछलियों की मांग बढ़ जाती है. एकदम जिन्दा-सी दिखने वाली चांदी की मछली के बिना बुंदेलखंड में दिवाली और धनतेरस पूजा अधूरी रहती है. नतीजतन घर-घर में चांदी की बनी मछली खरीदी जाती है. बस जितनी जिसकी जेब भारी उतनी बड़ी मछली खरीदते हैं.
बुंदेलखंड में दिवाली पूजा में चांदी की मछली के पूजन की प्राचीन परम्परा होने की वजह से लगभग सभी लोग अपनी -अपनी जेब के हिसाब से इन्हें खरीद कर पूजन करते हैं. हिन्दू धर्म में मीन (चाँदी की मछली) को शुभ और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. जिसके चलते यह घर-घर में खरीदी जाती है.
इसके चलते एक ग्राम की छोटी से लेकर एक किलो तक चांदी की बड़ी मछलियों से बाजार गुलजार हो रहे हैं. देखने में एक दम जिंदा सी दिखने वाली लोचदार, तड़पती, फड़कती चांदी की मछलियां देखने वाले को पहली ही नजर में अपना दीवाना बना लेती हैं. मछली बनाने वाले कारीगर बिना किसी मशीन के सिर्फ हाथों की कलाकारी से इन मछलियों को बनाते हैं.
ये मछलियां हस्तकला का नायाब मनूना हैं. जो हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे में ही बनाई जाती हैं और पूरी दुनिया में भेजी जाती हैं. चांदी की इस मछलियों के कद्रदान सिर्फ अपने देश में ही नहीं, बल्कि सऊदी अरब, दुबई, पाकिस्तान , बांग्लादेश , श्रीलंका सहित गल्फ देशों में इन मछलियों की भारी मांग रहती है.
एक ग्राम चांदी से बनी छोटी मछलियों को लोग कोट में लगाते हैं और महिलाएं कानों में पहनती हैं. लोग अपनी सुविधा अनुसार चांदी के वजन की मछलियां खरीदते हैं, जिन्हें पूजा के स्थान में रखते हैं, तो कुछ लोग कांच के फ्रेम के अंदर रख कर अपने घरों के ड्राइंग रूम में रखते हैं.
इस इलाके में शादी, बारातों में गिफ्ट करते हैं तो विशेष अतिथियों को चांदी की मछलियां भेंट की जाती हैं. इस इलाके में आने वाले बड़े नेताओं और बड़े अधिकारियों को भी चांदी की मछली भेंट करके उनका स्वागत किया जाता है. मौदहा कस्बे में सिर्फ एक ही परिवार चांदी की मछलियों को बनाने का कार्य करता है. इस परिवार की एक दर्जन दुकानें हैं जिनमें चांदी की मछली बनती और बेची जाती हैं.
चांदी की मछली बनाने वाले राजेंद्र सोनी का कहना है कि सदियों पूर्व उनके पूर्वजों ने चांदी की मछली बनाने का कार्य शुरू किया था. उनकी इस अनोखी कला को देखते हुए इनाम तो कई मिले थे, पर आर्थिक सहायता कभी नहीं मिली है. जिससे ये नायाब कला अब लुप्त होने की कगार पर है.
घर के पूजा स्थलों में अपनी पैठ बनाने वाली चांदी की मछलियां 5 ग्राम से लेकर 5 किलो तक के वजन की बाजार में उपलब्ध हैं. लेकिन पूरे देश में सिर्फ हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे में एक परिवार द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी से बनाई जा रही हैं. अंग्रेजी शासन में जब इस परिवार के बुजुर्गों ने विक्टोरिया राजकुमारी को चांदी की मछली भेंट की थी तो राजकुमारी ने मछली की खूबसूरती को देख कर इन्हें एक मैडल भी दिया था.
मछली की इसी कला के कारण इस परिवार का नाम Ain-i-Akbari (आइन-ए-अकबरी) पुस्तक में भी दर्ज है. सदियों से लोगों का मन मोह लेने वाली इन मछलियों के कारीगरों को आज तक कोई सरकारी सहायता नहीं मिली है. अगर अभी भी देश और प्रदेश की सरकार चांदी की मछली बनाने वाले कलाकारों को सुध ले ले, तो चांदी की मछली देश और दुनिया में विख्यात हो सकती है.