गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला से उनकी राजनैतिक यात्रा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संबंधों और राज्य के विधानसभा चुनाव को लेकर संपादक सौरभ द्विवेदी की बातचीत के मुख्य अंश:
क्या आप एक बार फिर से कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं?
यह मैंने मीडिया के माध्यम से जाना कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अहमदाबाद आने वाले हैं और मैं कांग्रेस ज्वाइन करने वाला हूं. न मैंने किसी को ऐसा बताया और न ही मुझसे ऐसा किसी ने कहा. यह मीडिया क्रिएशन के अलावा कुछ नहीं है.
आपके बेटे महेंद्र सिंह ने तो कांग्रेस ज्वाइन कर ली है.
महेंद्र भाई को भाजपा और आप से ऑफर थे. लेकिन मैंने उनसे कहा कि अगर आप भाजपा ज्वाइन करते हैं तो मैं आपके प्रचार में नहीं आ पाऊंगा. मैं सौ फीसद भाजपा विरोधी हूं. मैंने कांग्रेस वालों से कहा कि अगर आप महेंद्र भाई का उपयोग करना चाहते हैं तो उन्हें कांग्रेस ज्वाइन करवाइए.
आपकी नरेंद्र मोदी से पहली मुलाकात कब हुई?
संघ के कार्यक्रमों में मेरी नरेंद्र मोदी से शुरुआती जान-पहचान हुई. एक और बात मैं आपको बताऊं जो लोग उनकी शिक्षा के बारे में कहते हैं, मेरी जानकारी में उन्होंने पत्राचार से दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए किया था. आगे की पढ़ाई का मुझे पता नहीं. इसी तरह उनकी शादी के बारे में काफी बातें होती हैं. मैं ऑन रिकॉर्ड यह बात कहता हूं कि उनकी शादी हुई लेकिन वे वैवाहिक जीवन में नहीं रहे.
कहा जाता है कि अगर शंकर सिंह वाघेला कांग्रेस के साथ बने रहते तो 2017 के चुनाव में भाजपा के खिलाफ बना माहौल अपनी नियति तक पहुंच जाता.
मैं आपकी इस बात से सहमत हूं. लेकिन अगर आपको हमारी जरूरत ही नहीं तो हम क्या करेंगे. 2017 में अगर कांग्रेस की सरकार बनती तो किसको तकलीफ होती? भाजपा को होती. 2012 में भी कांग्रेस की सरकार बन सकती थी, क्यों नहीं बनने दी. यही मैच फिक्सिंग थी. मैं नाम नहीं लूंगा लेकिन कांग्रेस के नेता भाजपा के साथ डील कर रहे थे. जो नाम हम सोनिया गांधी के पास टिकट के लिए भेजते उसके खिलाफ लोग हो जाते. अगर मैं ज्यादा बहस करता तो कहा जाता कि मैडम पर छोड़ दो. 15-17 ऐसी सीटें मैडम पर छोड़ी जाती थीं. फिर मैं उन्हें पत्र लिखता लेकिन कोई नतीजा नहीं निकलता.
2009 में आप गोधरा से तीन हजार से कम वोटों से लोकसभा चुनाव हारे. लेकिन कहा गया कि कांग्रेस के लोगों ने ही आपको हरा दिया. क्या था मामला?
गोधरा के साथ हमेशा से मेरे ऐसे ही अनुभव रहे. मैं वहां दो बार चुनाव लड़ने गया. दोनों बार हाइकमान के कहने पर लड़ने गया. 1991 में भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ा तो बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद ने मेरे खिलाफ प्रचार किया. दूसरी बार कांग्रेस में था. तब मेरे खिलाफ कांग्रेस के ही कुछ नेताओं के कहने पर कई मुस्लिम निर्दलीय प्रत्याशी उतार दिए गए. इसके चलते मैं बहुत कम वोट से चुनाव हार गया.
आप शराबबंदी को अव्यवहारिक क्यों मानते हैं?
गुजरात महात्मा गांधी और सरदार पटेल का गुजरात है. यहां शराबबंदी रही. लेकिन यह प्रैक्टिकल नहीं है. शराब का हजारों करोड़ रुपए का कारोबार है जो गैर-कानूनी तरीके से चल रहा है. आप गुजरात से एक कदम बाहर रखिए आपको शराब मिल जाएगी. इससे राज्य के राजस्व का हजारों करोड़ रुपए का नुक्सान होता है. मैं कहता हूं कि जैसे सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी होती है वैसे ही शराब की बोतल पर लिखी जाए. शराब से आने वाले राजस्व से बच्चों को मुफ्त शिक्षा और जनता को मुफ्त स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधा दी जा सकती है. हमारे आदिवासी अंचल में बहुत से लोग देसी शराब बनाते हैं, उनको भी रोजगार मिलने लगेगा.
क्या आपका राजनैतिक करियर अब खत्म हो गया है?
मैं राजनीति में करियर बनाने नहीं आया था. हिंदू महासभा और जनसंघ से राजनीति की शुरुआत की. उस समय वहां कौन सा करियर था. लेकिन अब कोई चुनाव नहीं लड़ूंगा. हालांकि लोगों के बीच अभी भी जा रहा रहा हूं. हाल ही में तीन सभाएं कीं. भाजपा के खिलाफ कांग्रेस को वोट देने की अपील की. मैं भाजपा के खिलाफ हूं.
पांच दशक लंबे राजनैतिक जीवन में कोई ऐसा फैसला है जिसका मलाल रहा हो?
कई ऐसे फैसले रहे जिनका मलाल रहा. मैं ज्योतिष में भरोसा नहीं करता, नियति में करता हूं. पीछे मुड़कर देखता हूं तो लगता है कि यह कदम नहीं उठाया होता तो ठीक रहता. जैसे कि मैं हर कार्यकर्ता को कहता हूं कि पार्टी मत छोड़ो, मुख्यधारा की राजनीति से दूर मत होना. लेकिन मैं खुद अलग हो गया. अपनी पार्टी बनाई. जिस काम के लिए दूसरों को रोकता रहा वही खुद किया.