गत फरवरी को, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ देश की कीमत पर अरबपति उद्योगपति गौतम अदाणी का पक्ष लेने का आरोप लगाया. उनका आरोप था कि अंबानी का ”असली जादू’’ 2014 में दिल्ली में भाजपा के सत्ता में आने के बाद शुरू हुआ. आरोपों की सूची लंबी थी.
राहुल ने आरोपों को बल देने के लिए एक तस्वीर भी दिखाई जिसमें अदाणी के निजी विमान में पीएम और अदाणी दोनों साथ हैं. पीएम पर तीखा हमला सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और स्पीकर ओम बिड़ला ने बाद में मोदी और अदाणी के खिलाफ राहुल की 18 टिप्पणियों को हटा दिया जिससे एक कांग्रेस नेता यह ट्वीट करने को विवश हुए कि ”लोकसभा में लोकतंत्र का अंतिम संस्कार’’ किया गया है.
राहुल के आरोपों पर अगले दिन अपने जवाब में, प्रधानमंत्री मोदी ने यह कहते हुए बड़ी चतुराई से बहस को अपने ऊपर व्यक्तिगत हमले के रूप में बदल दिया कि ”1.4 अरब भारतीयों का विश्वास’’ उनके लिए ”सुरक्षा कवच’’ का काम करता है जिसे कोई झूठ नहीं भेद सकता. राहुल पर हमला करते हुए उन्होंने पूरी कांग्रेस को निशाने पर ले लिया और कहा कि एक पार्टी इतनी ”निराशा और अहंकार में डूबी’’ है कि उसे हर चीज में बस खोट नजर आती है.
हालांकि, पीएम ने 87 मिनट के भाषण में उन अदाणी का जिक्र तक नहीं किया जो इस सारे विवाद के केंद्र में थे. विशेष रूप से पिछले एक दशक में अदाणी की संपत्तियों में हुई अभूतपूर्व वृद्धि के कारण विपक्ष अक्सर क्रोनी कैपिटलिज्म के आरोप लगाता है और बार-बार कहता है कि मोदी के पीएम बनने के बाद से अदाणी की संपत्ति में 200 प्रतिशत से अधिक इजाफा हुआ है (राहुल की गणना के हिसाब से अदाणी दुनिया के अमीरों की सूची में 609वें नंबर से 2 तक पहुंच गए).
इसका अधिकांश श्रेय पहले गुजरात के मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री के रूप में, मोदी की व्यापार-अनुकूल नीतियों को दिया जाता है जिससे अदाणी को देशभर में बंदरगाहों, हवाई अड्डों, सड़कों, रेल, जीवाश्म ईंधन और हरित ऊर्जा के क्षेत्र में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का ठेका मिल गया.
2018 में, मोदी सरकार के एक विवादास्पद निर्णय— वित्त मंत्रालय और नीति आयोग द्वारा जताई गई चिंताओं को नजरअंदाज करते हुए—ने अदाणी को छह हवाई अड्डों के लिए बोली लगाने और ठेका हासिल करने की अनुमति दी. अदाणी के पास हवाई अड्डों के संचालन का कोई पूर्व अनुभव नहीं था, लेकिन इस फैसले ने उनके समूह को रातोरात देश के सबसे बड़े निजी एयरपोर्ट संचालकों में से एक बना दिया.
उपलब्ध दस्तावेजों से पता चलता है कि नीति आयोग के पीपीपी डिविजन को आपत्ति थी कि बोली लगाने वाले के पास तकनीकी क्षमता की कमी है और वह परियोजना को खतरे में डाल सकता है. हालांकि, सचिवों के एक अधिकार प्राप्त समूह ने निर्णय लिया था कि बोली लगाने वाले के लिए कार्य के पूर्व अनुभव को एक अनिवार्य शर्त नहीं बनाया जाएगा. इन चर्चाओं की सारी गोपनीय जानकारी रखने वाले एक नौकरशाह बताते हैं, ”इस बात की मजबूत दलील थी कि इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी.’’
उन्होंने कहा कि अदाणी के अलावा, जीएमआर ग्रुप, ज्यूरिख एयरपोर्ट, कोचीन इंटरनेशनल एयरपोर्ट और चांगी एयरपोर्ट (सिंगापुर) ने बोलियों में भाग लिया था. आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) की ओर से प्रत्येक कॉर्पोरेट घरानों को मात्र दो हवाई अड्डों तक सीमित करने के लिए तर्क दिए गए थे, खासकर इसलिए क्योंकि हवाई अड्डों पर बड़े पैमाने पर पूंजी की आवश्यकता होती है. लेकिन 2018 में, जब चर्चा हो रही थी, घरेलू बुनियादी ढांचे के कई खिलाड़ियों की माली हालत खस्ता थी. कांग्रेस नेताओं ने तब भी खतरे की घंटी बजाई थी, लेकिन भाजपा नेताओं का तर्क है कि सारे निर्णय गंभीर खिलाड़ियों के लिए व्यापार करने में आसानी (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) की गारंटी को ध्यान में रखकर लिए गए थे.
रक्षा क्षेत्र में अदाणी समूह के कदम रखने पर, राहुल ने आरोप लगाया कि भारत-इज्राएल रक्षा सहयोग के तहत हुई सारी पहल एक तरह से अदाणी को एक थाली में सजाकर परोस दी गई थी और सभी द्विपक्षीय मैन्युफैक्चरिंग अनुबंध समूह के पास जा रहे थे. पहले की तरह एक बार फिर से यह तब हो रहा था जब अदाणी के पास इस क्षेत्र में कोई पूर्व अनुभव नहीं था. हालांकि, सैन्य पर्यवेक्षकों को लगता है ये सारे आरोप ‘राजनैतिक घमासान’ से प्रभावित हैं.
पूर्व अनुभव के विषय पर उनका कहना है कि इस तरह तो कोई भी निजी भारतीय फर्म उन योग्यता मापदंडों को पूरा नहीं कर सकेगी क्योंकि रक्षा क्षेत्र पर अब तक सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार रहा है. वे ज्यादा से ज्यादा किसी विदेशी फर्म के साथ गठजोड़ करके उसके साथ मिलकर अनुभव प्राप्त करके पूर्व-योग्यता के मानदंड पर पूरे उतर सकते हैं.
एक रक्षा विशेषज्ञ कहते हैं, ”यहां, एकमात्र सवाल यह है कि अदाणी के लिए किसी भी पूर्व-योग्यता मानदंड में ढील दी गई थी या नहीं.’’ भारत सरकार के स्वामित्व वाली एयरोस्पेस और रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के साथ मिसाइल समझौते के अलावा, अदाणी और उनकी साझेदार इज्राएली फर्मों को ड्रोन, रडार और संचार प्रणाली के अनुबंध मिले.
रक्षा मंत्रालय के एक प्रमुख अधिकारी विमान निर्माण में टाटा समूह के प्रवेश की ओर इशारा करते हैं. अधिकारी कहते हैं, ”टाटा ने कभी विमान नहीं बनाया था, लेकिन उन्होंने एयरबस के साथ करार किया है और अब भारत में सी-295 परिवहन विमान बना रहे हैं. इसी तरह, एलऐंडटी को परमाणु पनडुब्बी कार्यक्रम में शामिल किया गया है. उनके पास भी पनडुब्बी बनाने का पहले का कोई अनुभव नहीं था.’’ अधिकारी यह भी जोड़ते हैं कि अनुबंध देते समय केवल एक चीज जो मायने रखती है, वह है अनुबंध को पूरा करने के लिए कंपनी की वित्तीय और तकनीकी क्षमता.
इस बीच, हाल के घटनाक्रमों पर अदाणी की प्रतिक्रिया में राष्ट्रवाद का आह्वान करने वाला भाव रहा है और यहां तक कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट को भी भारत पर हमला कहा गया है. हालांकि, यह विपक्ष को प्रभावित करने में विफल रहा है क्योंकि संसद के दोनों सदन विरोध और नारेबाजी के बीच कई बार स्थगित हुए.
कांग्रेस और 16 अन्य विपक्षी दलों ने अदाणी समूह की एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) या सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में जांच की मांग की है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने जोर देकर कहा, ”केवल एक जेपीसी या फिर सीजेआइ की निगरानी में सुप्रीम कोर्ट की जांच से ही एलआइसी और पीएसयू बैंकों द्वारा वित्तीय धोखाधड़ी की आरोपी कंपनियों में ‘जबरन’ निवेश की सच्चाई सामने आ सकती है.’’
जहां राज्यसभा के नेताओं ने नियम 267 के तहत नोटिस दिया है, वहीं लोकसभा के कई सदस्यों ने सदन में भी इस मुद्दे पर चर्चा के लिए नोटिस दिया है. लोकसभा अध्यक्ष बिड़ला ने सदस्यों से ”निराधार दावे नहीं करने’’ का अनुरोध करते हुए उनकी मांग अस्वीकार कर दी है जबकि राज्यसभा के अध्यक्ष और उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सभी प्रस्तावों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे ‘नियमों के अनुरूप नहीं’ थे. लेकिन विपक्ष अडिग है.
हम अदाणी के हैं कौन?
अलग-अलग मोर्चों पर विपक्ष के हमले जारी हैं. कांग्रेस केंद्र सरकार से 1990 के दशक की लोकप्रिय रोमांटिक कॉमेडी फिल्म के टाइटल को केंद्र में रखकर केंद्र को कठघरे में खड़ा करती रही. ‘हम अदाणी के हैं कौन?’ के नारे के साथ इस मुद्दे पर 5 फरवरी से हर दिन पीएम मोदी से तीन सवाल किए जाते रहे.
कांग्रेस सदस्य पूरे भारत में एलआइसी और एसबीआइ के कार्यालयों और शाखाओं के सामने भी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. स्टॉक निवेश (एलआइसी) और ऋण (एसबीआइ) के माध्यम से, ए-सूची के सार्वजनिक क्षेत्र के दोनों संस्थानों ने अदाणी को बड़े स्तर पर खेलने में सक्षम बनाने में अहम भूमिका निभाई है. दोनों का कहना है कि अदाणी की कंपनियों में उनका जोखिम, उनके कुल निवेश का 1 प्रतिशत से भी कम है.
विपक्ष को यह लग रहा है कि अदाणी विवाद के जरिए 2011 वाला माहौल बनाया जा सकता है, जब भाजपा ने टेलीकॉम स्पेक्ट्रम, कोयला खदानों और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के आवंटन में घोटालों के आरोपों को लेकर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को घेरा था. भाजपा सरकार को निशाना बनाने का आखिरी ऐसा प्रयास 2019 के आम चुनाव के दौरान हुआ था, जब राहुल ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे.
उस समय ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया था, और बाद में तो यहां तक कहा गया कि मोदी पर इस सीधे प्रहार से फायदे के बदले उल्टा नुक्सान हो गया. कांग्रेस नेता मोदी पर अपने 2015 के ”सूटबूट की सरकार’’ वाले तंज की तर्ज के ही अधिक प्रभावित साबित होने की उम्मीद कर रहे होंगे. ”सूटबूट की सरकार’’ वाले प्रकरण ने सरकार को विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया था जो पुनर्वास और पुनर्स्थापन (आरएफसीटीएलएआरआर) अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार में संशोधन का प्रस्ताव करता था.
वास्तव में, राहुल का कहना है कि ये आरोप उनके उस दावे की पुष्टि करते हैं जिसमें वे लगातार यह कहते आए हैं कि मोदी सरकार दो शीर्ष उद्योगपतियों को गलत तरीके से मदद पहुंचा रही है. लोकसभा में अपने भाषण के बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा, ”कई सालों से, मैं सरकार और उसके ‘हम दो, हमारे दो’ की सोच के बारे में बात कर रहा हूं. वास्तव में वह संसद में अदाणी पर चर्चा से डरी हुई है.’’ उन्होंने मोदी सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वे ‘अमृत काल’ की बातें करते हैं लेकिन वास्तव में यह ‘मित्र काल’ है.
फिलहाल, विपक्ष मोदी के खिलाफ एकजुट दिखता है लेकिन भीतर ही भीतर कई अन्य सुगबुगाहट भी दिखाई दे रही हैं. अदाणी मुद्दे पर कांग्रेस को लग रहा है कि भाजपा विरोधी दल उसका समर्थन कर रहे हैं, लेकिन भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस), आम आदमी पार्टी (आप) और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) जैसे क्षेत्रीय दिग्गज कांग्रेस की छत्र के नीचे विरोध करने से हिचक रहे हैं.
वे अपनी लड़ाई का नेतृत्व स्वयं करना चाहते हैं. उदाहरण के लिए, जब कांग्रेस ने संसद में विपक्ष की रणनीति पर चर्चा के लिए बैठक बुलाई, तो ममता बनर्जी की टीएमसी ने इसमें हिस्सा नहीं लिया. और जहां कांग्रेस और अन्य दलों ने 8 फरवरी से संसदीय कार्यवाही में भाग लेने का फैसला किया, आप और बीआरएस दूर रहे क्योंकि जेपीसी के गठन का आदेश नहीं दिया गया है.
फ्रंट फुट पर बल्लेबाजी
आर्थिक अपराधियों को कानून के कठघरे में लाने के लिए बेहद मुखर रहने वाले पीएम मोदी ने अब तक अदाणी के आरोपों के बारे में सीधे बात करने से परहेज किया है. दरअसल, शुरुआत से ही पीएम की योजना यह रही थी कि राहुल के आरोपों को ऐसा रंग दे दिया जाए कि वे मोदी पर व्यक्तिगत हमले कर रहे है और लोगों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, उनकी ईमानदारी, उनके द्वारा शुरू की गई योजनाओं और उन्होंने देश के पक्ष में ‘सकारात्मकता’ का जो माहौल तैयार किया है राहुल उस पर सवाल उठा रहे हैं.
राहुल की इस टिप्पणी पर कटाक्ष करते हुए कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय ”अदाणी घोटाले’’ पर एक केस स्टडी कर सकता है, पीएम ने कहा कि अमेरिकी विश्वविद्यालय पहले ही ‘लोकतंत्र के नाम पर? भारत की कांग्रेस पार्टी का उदय और पतन’ शीर्षक से एक अध्ययन कर चुका है.
राहुल के इस आरोप का सीधे तौर पर उल्लेख किए बिना कि उन्होंने अदाणी समूह को अनुबंध देने के लिए बांग्लादेश और श्रीलंका में सरकारों को मजबूर किया था, पीएम मोदी ने कहा, ”विपक्षी नेता अपने स्वयं के बयानों का खंडन करते हुए विरोधाभासी बाते करते हैं. उनका कहना है कि 2014 के बाद से भारत की वैश्विक छवि कमजोर हुई है. लेकिन उनका यह भी कहना है कि भारत विदेशी सरकारों को धमकाता है. उन्हें ठीक से सोच-विचार कर लेना चाहिए कि वे वास्तव में क्या कहना चाहते हैं.’’
भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं ने भी मोदी-अदाणी कनेक्शन के सीधे संकेतों को खारिज कर दिया है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह कहते हुए कि भारत के वित्तीय बाजार ”बहुत अच्छी तरह से विनियमित’’ हैं, उन चिंताओं को खारिज कर दिया कि अदाणी विवाद वैश्विक निवेशकों को चिंतित करेगा. संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि अदाणी मामले और सरकार के बीच कोई संबंध नहीं है. केवल भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ही थे जिन्होंने सीधा मुकाबला करते हुए कहा, ”यदि आप यह साबित कर सकते हैं कि पीएम बनने के बाद, मोदीजी ने अदाणी के साथ एक बार भी यात्रा की है, तो मैं इस्तीफा दे दूंगा.’’
भाजपा के वैचारिक स्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके कई सहयोगियों के लिए अदाणी एक ऐसे उद्यमी हैं जिन्हें कुछ भी विरासत में नहीं मिला बल्कि अपने पुरुषार्थ से वे वैश्विक स्तर पर इतने बड़े खिलाड़ी बने हैं. हिंडनबर्ग रिपोर्ट और कुछ वैश्विक संस्थानों द्वारा बाद की प्रतिक्रियाओं को आरएसएस से जुड़ी ऑर्गेनाइजर पत्रिका भारतीय अर्थव्यवस्था पर हमले के रूप में देखती है और इसे उन घटनाओं की एक शृंखला का हिस्सा बताती है जिसका उद्देश्य ”अंतत: चीन को फायदा पहुंचाना है.’’
इसने उल्लेख किया कि न केवल अदाणी, बल्कि मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज और अनिल अग्रवाल के नेतृत्व वाले वेदांता रिसोर्सेज जैसे अन्य समूहों को भी ऐसे हमले झेलने पड़े हैं. इसकी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ”ये उदाहरण केवल यह साबित करते हैं कि एक खुली और परस्पर जुड़ी दुनिया में भारतीय अर्थव्यवस्था पर हमले अब बहुत आसान हो गए हैं. यह पांचवीं पीढ़ी के हथियारों का हिस्सा हैं, जिसमें दुश्मन शक्तियां भारतीय अर्थव्यवस्था को निशाना बनाने के लिए विभिन्न कुटिल चालों का सहारा लेती हैं.’’ इसने इसके लिए एक ”भारतीय लॉबी को भी जिम्मेदार बताया है जिसमें वामपंथी विचारधारा से जुड़ी देश की प्रसिद्ध प्रोपगेंडा वेबसाइटें शामिल हैं.’’
आरएसएस के ही एक आनुषंगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने अदाणी समूह का तो कोई सीधा बचाव नहीं किया है, लेकिन हिंडनबर्ग रिसर्च की मंशा पर सवाल उठाया है. मंच के संयोजक अश्वनी महाजन कहते हैं, ”इसके पीछे उनके क्या हित हैं? अमेरिका में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां अदालतों ने हिंडनबर्ग की पिछली ऐसी रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं.’’
वास्तव में, अधिकांश भाजपा नेताओं का कहना है कि यह रिपोर्ट मोदी और भारत के खिलाफ वैश्विक साजिश का हिस्सा है. उनकी नजर में हाल ही में 2002 के गुजरात दंगे, जब मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे, पर बीबीसी की वह डॉक्यूमेंट्री भी इसी बड़ी साजिश का हिस्सा है. भाजपा के एक मंत्री कहते हैं, ”जैसे वह राजनैतिक हमला था, उसी तरह हिंडनबर्ग रिपोर्ट को भारत के आर्थिक पुनरुत्थान को निशाना बनाने के लिए आई है.’’
इस बीच, भाजपा समर्थक सोशल मीडिया हैंडल अदाणी के समर्थन में खुलकर सामने आ गए हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर सवाल उठाने वाले मीक्वस की बाढ़ आ गई है. #IndiaStandsWithAdani ट्विटर पर टॉप-ट्रेंडिंग हैशटैग में से एक रहा है. कुछ हस्तियां भी इसमें शामिल हो गई हैं, जिनमें आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु और पूर्व क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग शामिल हैं. सहवाग ने ट्वीट किया, ”यह भारत के बाजारों पर हमले की एक सुनियोजित साजिश की तरह नजर आता है.’’
भाजपा जनता की धारणाओं को मनचाहे तरीके से प्रबंधित करने में सफल हो सकती है लेकिन अगर अदाणी का पतन होता है, तो इससे प्रधानमंत्री की छवि प्रभावित हो सकती है. खासतौर पर तब जब आरबीआइ और शेयर बाजार नियामक सेबी अदाणी के निवेश और अनियमितताओं की निगरानी में ढिलाई बरतते पाए गए.
अगर सरकार द्वारा अदाणी समूह को दी गई बुनियादी ढांचा निर्माण की बड़ी परियोजनाएं रुक जाती हैं, तो प्रधानमंत्री के लिए यह एक चुनौती होगी कि वे व्यापार समूहों के साथ खड़े होने की सरकार की मंशा को लेकर देश को आश्वस्त करें. अगले आम चुनाव में एक साल बचा है, ऐसी कोई भी दुर्घटना विपक्ष को हमले के लिए ताकत देते हुए मोदी को बैकफुट पर ला देगी. कांग्रेस के एक राज्यसभा सांसद कहते हैं, ”राफेल घोटाले के आरोपों का मतदाताओं पर कोई असर नहीं पड़ा.
घोटाले की गंभीरता को कोई नहीं समझ सका. लेकिन अदाणी मामला अलग होगा. अगर कंपनी लडख़ड़ाती है, तो इसका असर लाखों भारतीयों पर पड़ेगा. मोदी के पास तब बचने का रास्ता नहीं होगा.’’ यह चीजों को बड़े बचकाने तरीके से देखने जैसी बात हो सकती है, लेकिन इसमें संदेह नहीं है कि विवाद में शामिल सभी पक्ष अंतत: शायद ही बहुत उमंग के साथ बाहर आएं.’’
निशाने पर मोदी
ऐसा नहीं है कि विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर नियम-कानूनों को ताक पर रखकर अदाणी के साम्राज्य को फैलाने में मदद करने का आरोप कोई पहली बार लगाया है
अदाणी के साम्राज्य के विस्तार में मोदी ने पहले गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए मददगार की भूमिका निभाई और फिर प्रधानमंत्री के रूप में. अदाणी समूह पर लगते आए अनियमितताओं के आरोपों के प्रति उन्होंने आंख मूंद ली
प्रधानमंत्री मोदी ने अदाणी के साथ अपने संबंधों की बात कभी कबूल नहीं की. अदाणी समूह के मुखिया गौतम अदाणी का कहना है कि उनको तो कांग्रेस सरकार की आर्थिक नीतियों से भी उतना ही फायदा हुआ
प्रधानमंत्री मोदी ने अदाणी समूह को खासे मुनाफे वाले ठेके दिलवाने के लिए इज्राएल, बांग्लादेश, ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका जैसे मुल्कों की सरकारों को प्रभावित किया
प्रधानमंत्री ने इन आरोपों का कोई जवाब नहीं दिया. इस आरोप का सीधा जिक्र न करते हुए मोदी ने लोकसभा में इतना कहा:
”विपक्षी नेता अपने ही बयानों का खंडन करते रहते हैं. वे कहते हैं कि दुनिया भर में भारत की इमेज 2014 के बाद कमजोर पड़ी है. अब वे कहते हैं कि भारत विदेश की सरकारों पर दबाव बनाता है. पहले इस बारे में उन्हें अपनी कोई राय बना लेनी चाहिए.’’
मोदी अपनी विदेश यात्राओं के दौरान अदाणी को भी साथ ले जाते हैं
भाजपा नेता निशिकांत दुबे ने राहुल गांधी को खुलेआम इस आरोप को साबित करने के लिए चुनौती दी है
मोदी ने 2018 में छह हवाई अड्डों के ठेके अदाणी समूह को दिलाने के लिए नियमों में फेरबदल करवाया
भाजपाई मंत्रियों ने इसके साक्ष्य मांगे हैं जबकि यह सार्वजनिक तथ्य है कि वित्त मंत्रालय और नीति आयोग ने एक ही समूह को दो से ज्यादा हवाई अड्डे दिए जाने का इस बिना पर ऐतराज किया था कि हवाई अड्डा बनाना भारी पूंजी वाला काम है
मोदी सरकार ने इज्राएल के साथ समझौते वाला डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग का एक ठेका अदाणी समूह को दे दिया जबकि इस समूह के पास रक्षा क्षेत्र में काम करने का पहले का कोई अनुभव ही नहीं था
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस क्षेत्र का अनुभव न रखने वाली कंपनी को ठेका देने पर कोई पाबंदी नहीं है
मोदी सरकार ने जीवीके इंडस्ट्रीज की बांहें मरोड़कर मुंबई हवाई अड्डा अदाणी समूह के हाथों बेचने को मजबूर किया
जीवीके ने आरोप खारिज किए; कांग्रेस का कहना है कि यह 2020 में ईडी और सीबीआइ के छापों का नतीजा था
भारतीय स्टेट बैंक और भारतीय जीवन बीमा निगम ने अदाणी समूह को बड़े पैमाने पर कर्ज दे रखा है. समूह का दिवाला निकल जाने पर करोड़ों लोगों के निवेश डूब जाने का खतरा है, यानी उनके पैसे जोखिम में डाल दिए गए हैं
स्टेट बैंक और एलआइसी दोनों ने कहा है कि अदाणी समूह में किया गया उनका निवेश उनके कुल निवेश का एक फीसद से भी कम है.
—साथ में प्रदीप आर. सागर.