देश में पहली बुलेट ट्रेन (मुंबई-अहमदाबाद) परियोजना को लेकर अच्छी खबर है. महाराष्ट्र सरकार ने बुलेट ट्रेन के लिए लगभग पूरी जमीनों का अधिग्रहण कर लिया है. सिर्फ गोदरेज एंड बॉयस की जमीन के एक टुकड़े का अधिग्रहण होना बाकी है. इस संबंध में महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट में जानकारी दी है. सरकार ने बताया कि उपनगरीय विक्रोली में गोदरेज एंड बॉयस मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड के स्वामित्व वाले भूखंड को छोड़कर पूरी लाइन पर भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया हो गई है. महाराष्ट्र के महाधिवक्ता ने मुंबई में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ गोदरेज एंड बॉयस द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही.
महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने कोर्ट को बताया- परियोजना के लिए आवश्यक पूरी भूमि बॉम्बे से अहमदाबाद तक है. इस मसले (गोदरेज के स्वामित्व वाले) को छोड़कर भूमि का पूरा अधिग्रहण पूरा हो चुका है. गोदरेज की भूमि का एकमात्र हिस्सा है जो राज्य सरकार के कब्जे में नहीं है और अन्य सभी भूमि पहले ही अधिग्रहित की जा चुकी है. गोदरेज के साथ-साथ राज्य और केंद्र सरकारें पहले ही जवाब दाखिल कर चुकी हैं. उन्होंने कहा कि जल्द इस याचिका पर सुनवाई शुरू की जाए. राज्य सरकार ने अधिग्रहण के लिए सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं और अब सिर्फ जमीन पर कब्जा करना बाकी है. गोदरेज की जमीन ही एकमात्र ऐसा हिस्सा था, जो राज्य के कब्जे में नहीं था और बाकी सभी जमीन पहले ही अधिग्रहित की जा चुकी है.
वहीं, गोदरेज की तरफ से वकील नवरोज सीरवई ने राज्य सरकार भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को ‘गैरकानूनी’ करार दिया और दावा किया कि इस प्रक्रिया में कई और पेटेंट अवैधताएं थीं. कंपनी ने राज्य सरकार और नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों का खंडन किया है कि यह भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में अनावश्यक बाधा पैदा कर रहे थे और इसलिए परियोजना में देरी हो रही थी. गोदरेज ने कहा कि राज्य और एनएचएसआरसीएल ने अधिग्रहण की प्रक्रिया में काफी देरी की है.
सीरवई ने कहा कि चूंकि एक ‘प्रमुख संवैधानिक चुनौती’ थी, जिस पर बहस करने की जरूरत थी, उन्हें अपनी दलीलें पूरी करने में कम से कम 4-5 घंटे लगेंगे. उन्होंने आगे कहा- कंपनी ने रिट याचिका में एक आवेदन भी दायर किया था जिसमें परियोजना के लिए अधिग्रहित की जाने वाली भूमि के भूखंडों पर निर्णय लेने के लिए राज्य के दस्तावेजों और अभिलेखों के प्रकटीकरण के लिए कहा गया था. सीरवई ने दावा किया कि गुजरात हाईकोर्ट के समक्ष कुछ खुलासे किए गए थे, जिस पर वह वर्तमान याचिका में भरोसा करेंगे.
कंपनी ने दाखिल किया हलफनामा
बता दें कि इससे पहले गोदरेज कंपनी ने हाईकोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था. इसमें कहा था- ‘प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता (गोदरेज) को अधिग्रहण की कार्यवाही में देरी का श्रेय देने का प्रयास दुर्भावनापूर्ण, विकृत और अक्षम्य है.’ हलफनामे में कहा गया है कि अधिकारी उचित मुआवजा अधिनियम की अनिवार्य वैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहे हैं. कंपनी के अनुसार, भूमि अधिग्रहण की अनुमानित लागत का विवरण देने वाली कोई रिपोर्ट तैयार नहीं की गई थी और इसलिए निर्णय लेने की पूरी प्रक्रिया कानून की दृष्टि में खराब थी. इसमें कहा गया है कि 264 करोड़ रुपये की अंतिम मुआवजा राशि भूमि अधिग्रहण के लिए कंपनी को दी गई, वो शुरुआती 572 करोड़ रुपये का एक अंश थी. हलफनामे में कहा गया है, ‘विचाराधीन जमीन के उचित बाजार मूल्य का आकलन करते समय दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
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