देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है और यूपी की सियासत पूर्वांचल से तय होती है. सपा से लेकर बीजेपी तक की नजर 2024 के लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल पर है. अखिलेश यादव ने गाजीपुर से चुनावी बिगुल फूंका तो बीजेपी ने पूर्वांचल के नेताओं को राजभवन भेजकर कहीं न कहीं बड़ा सियासी दांव चल दिया है. शिवप्रताप शुक्ला और लक्ष्मण प्रसाद आचार्य को ही राज्पाल नहीं बनाया गया है बल्कि मौजूदा समय में देश के अलग-अलग राज्यों में यूपी से सात गवर्नर हैं. इनमें से सातों किसी न किसी रूप में पूर्वांचल से ताल्लुक रखते हैं. ऐसे में साफ है कि बीजेपी का पूरा फोकस पूर्वांचल के जातीय समीकरण को साधने का है.
केंद्र की मोदी सरकार ने रविवार को 13 राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति की है. इनमें कुछ इधर से उधर किए गए हैं तो कुछ नए नेताओं को भी राजभवन भेजा गया है. इसमें उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के नेताओं को खास अहमियत दी गई है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और ब्राह्मण चेहरे के रूप से पहचाने जाने जाने वाले शिव प्रताप शुक्ला को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है तो अनुसूचित जनजाति समाज से आने वाले लक्ष्मण प्रसाद आचार्य को सिक्किम का गवर्नर नियुक्त किया है. ऐसे ही ओबीसी समुदाय से आने वाले राज्यपाल फागू चौहान को बिहार से मणिपुर ट्रांसफर कर दिया है. यह तीनों ही राज्यपाल पूर्वांचल से आते हैं.
दिलचस्प बात यह है कि मोदी सरकार के आने के बाद से उत्तर प्रदेश के नेताओं को राजभवन जाने का अच्छा खासा मौका मिला है. रविवार को यूपी के तीन राज्यपालों की नियुक्त के साथ प्रदेश के सात गवर्नर हो गए हैं. इन सातों ही नेताओं का तल्लुक यूपी के पूर्वांचल से किसी न किसी रूप में है. इतना ही नहीं पूर्वांचल के जातीय समीकरण के लिहाज से भी राज्यपालों की नियुक्त काफी अहम है.
सात राज्यपालों का पूर्वांचल कनेक्शन
हिमाचल प्रदेश के नवनियुक्त राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला गोरखपुर से हैं. सिक्किम के नवनियुक्त राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य वाराणसी से ताल्लुक रखते हैं. बिहार से मेघालय के राज्यपाल बने फागू चौहान आजमगढ़ से आते हैं और मऊ से सियासत करते रहे हैं. राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र गाजीपुर, जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा गाजीपुर और लद्दाख के उपराज्यपाल बीडी मिश्रा भदोही से हैं. केरल के राज्यपाल अरिफ मोहम्मद खान पश्चिमी यूपी के बुलंदशहर के हैं, लेकिन उनकी सियासी कर्मभूमि बहराइच रही है. इस तरह सातों राज्यपालों का ताल्लुक किसी न किसी रूप में यूपी के पूर्वांचल से है.
पूर्वांचल में ब्राह्मणों को दिया संदेश
उत्तर प्रदेश में सवर्ण मतदाताओं में सबसे ज्यादा ब्राह्मण समुदाय के हैं और बीजेपी के परंपरागत वोटर हैं. ब्राह्मण पूर्वांचल की सियासत में सबसे अहम भूमिका में हैं. इन सारे राजनीतिक समीकरण को देखते हुए बीजेपी ब्राह्मण समुदाय को अपने साथ साधे रखने की हरसंभव कोशिश कर रही है. योगी कैबिनेट में डिप्टी सीएम से लेकर मोदी सरकार में ब्राह्मण चेहरे को जगह मिली मिली है. इसके अलावा यूपी के सात राज्यपालों में से तीन ब्राह्मण समुदाय के हैं और तीनों ही पूर्वांचल से हैं. शिव प्रताप शुक्ला, कलराज मिश्रा और बीडी मिश्रा. ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाने के बाद शिव प्रताप शुक्ला को नई जिम्मेदारी देकर 2024 के चुनाव से पहले सूबे के आठ फीसदी ब्राह्मण समाज को बड़ा सियासी संदेश दिया है.
शिव प्रताप शुक्ल पूर्वांचल की सियासत और ब्राह्मण राजनीति के बड़े चेहरे रहे हैं तो कलराज मिश्रा की एक समय में सियासी तूती बोलती थी. सूबे की सियासत में शुक्ला की खास अहमियत रही है. एक समय योगी आदित्यनाथ और शुक्ला के सियासी रिश्ते छत्तीस के रहे हैं. योगी के चलते एक वक्त ऐसा भी आया जब शिव प्रताप शुक्ला की सियासत खत्म मानी जाने लगी थी, लेकिन 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद शुक्ला की सियासत को संजीवनी मिली. राज्यसभा भेजा और अपनी कैबिनेट में राज्यमंत्री बनाया तो अब राज्यपाल का जिम्मा सौंपा है. ऐसे ही कलराज मिश्रा एक दौर में अटल बिहारी वाजपेयी और मुरली मनोहर जोशी के बाद तीसरे सबसे बड़े ब्राह्मण नेता माने जाते थे. मोदी सरकार ने उन्हें अपनी कैबिनेट में जगह देने से लेकर राज्यपाल तक का जिम्मा सौंपा.
पूर्वांचल के ओबीसी वोटों का साधने का दांव
उत्तर प्रदेश में बीजेपी का सियासी वनवास गैर-यादव ओबीसी वोटों के चलते खत्म हुआ है. ओबीसी के अति पिछड़े समाज के वोटों को बीजेपी हरहाल में जोड़े रखना चाहती है, क्योंकि पूर्वांचल की सियासत में उनकी भूमिका काफी अहम है. बसपा की सियासत से निकले फागू चौहान को पहले बीजेपी ने अपने साथ लेकर यूपी की सियासत को साधा और फिर बिहार का गवर्नर बनाकर राजभवन भेज दिया, लेकिन अब उनका तबदला मेघालय कर दिया गया है. फागू चौहान ओबीसी के नोनिया समाज से आते हैं, जो आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर के जिले में बड़ी संख्या में हैं. यहां पर चार लोकसभा सीटें और चारों पर विपक्ष का कब्जा है. बीजेपी फागू चौहान के जरिए फिर से पूर्वांचल की इन सीटों पर वापसी का दांव चला है, क्योंकि 2022 चुनाव में पार्टी का सबसे खराब प्रदर्शन इसी इलाके में था.
आदिवासी वोटों को दिया सियासी संदेश
उत्तर प्रदेश में आदिवासी समुदाय का कोई खास बड़ा वोटबैंक नहीं है, लेकिन बीजेपी उसे भी साधे रखने की कवायद कर रही है. इसी मद्देनजर बीजेपी ने लक्ष्मण प्रसाद आचार्य को राज्यपाल बनाया गया है, जो अभी तक प्रदेश उपाध्यक्ष और एमएलसी हैं. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र से आते हैं और 2014 में वाराणसी लोकसभा सीट के चुनावी संयोजक थे. संघ द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर में शिक्षक रहे लक्ष्मण आचार्य राम मंदिर आंदोलन में भागीदार रहे हैं. उनका जन्म आदिवासी खरवार जाति के परिवार में हुआ. यूपी में खरवार, मुसहर, गोंड, बुक्सा, चेरो, बैंगा आदिवासी जातियां है, इनकी आबादी 20 लाख के करीब है. यूपी के सोनभद्र, चंदौली, गोरखपुर, बलिया सहित 12 जिलों में आदिवासी जातियां है, जिसे साधने के लक्ष्मण प्रसाद को राजभवन भेजकर संदेश दिया है.
भूमिहार समुदाय से मनोज सिन्हा
जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा गाजीपुर से हैं और भूमिहार समुदाय से हैं. पूर्वांचल में आजमगढ़, बनारस, मऊ, बलिया, गाजीपुर, देवरिया, कुशीनगर और जौनपुर में भूमिहार समुदाय की संख्या अच्छी खासी है. बीजेपी का यह कोर वोटर माना जाता है और पार्टी उसे हरहाल में जोड़े रखना चाहती है, क्योंकि पूर्वांचल को बिना भूमिहारों के राजनीति नहीं साधा जा सकती है. इसीलिए योगी कैबिनेट में भूमिहार समुदाय से दो मंत्री है तो मनोज सिन्हा जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल.
आरिफ मोहम्मद खान और अब्दुल नजीर
सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस.अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का नया राज्यपाल बनाया गया है, वे इसी साल सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे. अब्दुल नजीर का सीधे तौर पर यूपी से कोई ताल्लुक नहीं है, लेकिन, अयोध्या के राम मंदिर से जुड़े वाद में फैसला देने वाली पीठ में शामिल होने की वजह से उनका यूपी से ऐतिहासिक ताल्लुक जुड़ गया. बीजेपी सरकार में मुस्लिम राज्यपालों में वह दूसरे हैं. नजमा हेपतुल्लाह को बनाया था. इसके बाद केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान भी यूपी से हैं. आरिफ मोहम्मद खान बुलंदशहर के हैं, लेकिन पूर्वांचल के बहराइच से लोकसभा चुनाव लड़ते रहे हैं. इस तरह से उनकी पकड़ पूर्वांचल के इलाके में है.
पूर्वांचल में बीजेपी की नई सोशल इंजीनियरिंग
उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य में पिछड़ा-अगड़ा और जनजातीय समाज के साथ मुस्लिमों को साधने की नई कवायद को आगे बढ़ाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. यूपी-बिहार में जातीय जनगणना को लेकर सियासी सरगर्मी बढ़ती जा रही है, उससे पूर्वांचल पर खास असर पड़ सकता है. इसकी वजह यह है कि पूर्वांचल की सियासत अभी भी जाति के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. सपा से लेकर बसपा तक पूरी तरह से सक्रिय है और विपक्ष प्रदेश में रामचरितमानस की चौपाई के जरिए दलितों और पिछड़ों के बीच बीजेपी को घेरने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में बीजेपी ने पूर्वांचल के समीकरण को देखते हुए राजनीतिक दांव चल रही है. इकी कड़ी में यूपी से बनाए गए राज्यपाल पूर्वांचल से ही हैं?
पूर्वांचल के 25 जिले की 26 लोकसभा सीटें
पूर्वांचल में 25 जिले आते हैं, जिनमें वाराणसी, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, गोरखपुर, कुशीनगर, सोनभद्र, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, संतकबीरनगर, बस्ती, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, बलिया, सिद्धार्थनगर, चंदौली, अयोध्या, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर और अंबेडकरनगर शामिल हैं. पूर्वांचल के इन 25 जिलों में कुल 26 लोकसभा सीटें आती हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में 19 सीटें बीजेपी जीती थी जबकि 7 सीटें सपा-बसपा गठबंधन को मिली थीं.