गुजरात के मोरबी ब्रिज (Morbi Bridge Collapse) हादसे की चर्चा पूरे देश में है. ब्रिज किन वजहों से टूटा, इसके कारण जानने के प्रयास किए जा रहे हैं. आईआईटी-बीएचयू (IIT-BHU) के सिविल इंजीनियरिंग एक्सपर्ट ने भी इस पर शोध किया. ब्रिज टूटने के कई कारण उनके शोध में सामने आए हैं.
सिविल इंजीनियरिंग विभाग के शिक्षक और ब्रिज एक्सपर्ट ने पुल टूटने के पीछे ओवरलोडिंग और इंजीनियरिंग फेल्योर को बड़ी वजह माना है. एक्सपर्ट की नजर से समझिए ब्रिज टूटने की क्या रहे कारण…
सात महीने से बंद था पुल
आईआईटी-बीएचयू में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. केके पाठक ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. इस हादसे के कारणों को करीब से जानने की कोशिश की है. इसमें कई सारी बातें निकल कर सामने आई हैं.
उन्होंने कहा कि मोरबी में बने जैसे पुल को झूला पुल भी कहा जाता है क्योंकि ये केबल पर टिका होता है. मोरबी का पुल भी केबल पर टिका था. इसे 143 साल पहले बनाया गया था. पिछले सात महीनों से बंद था और चार दिन पहले ही इसे खोला गया था.
यहां रही जिम्मेदारों की चूक
प्रोफेसर के अनुसार, मोरबी पुल पर एक बार में केवल 100 लोगों की एंट्री दी जा सकती थी क्योंकि यह काफी पुराना पुल था. लेकिन घटना के वक्त उस पर 500 लोग मौजूद थे. जो वीडियो सामने आया है, उसमें लोग एक जगह खड़े होकर पुल को हिलाते नजर आ रहे हैं. इससे पुल पर इंपेक्ट लोड बढ़ गया. जिम्मेदारों को ऐसा करने से लोगों को रोकना चाहिए था. मगर, ऐसा हुआ नहीं.
साइकलिंक फेल्योर की वजह से टूटे सस्पेंडर
उन्होंने बताया कि हरे रंग के संस्पेंडर केबल मेन केबल से सस्पेंशन ब्रिज से लटके रहते हैं. इन्हीं केबल पर लोडिंग ज्यादा होने की वजह से एक विक संस्पेंडर का लोड दूसरे संस्पेडर पर हो गया और इस साइकलिंक फेल्योर की वजह से एक तरफ के सारे सस्पेंडर टूट गए. वहीं, दूसरे तरफ के संस्पेंडर साइकलिंक फेल्योर में टूट गए.
डिजाइन पर निर्भर है ब्रिज की क्षमता
उन्होंने संस्पेंशन ब्रिज की क्षमता के बारे में बताया, ”ऐसे पुल की क्षमता उसके संस्पेंडर केबल के मुताबिक डिजाइन होती है. इसके लिए IRC ने मानक निर्धारित भी कर रखा है. मगर, मोरबी पुल ब्रिटिश कोड के मानक के 100 लोगों की क्षमता के अनुसार था. इस ब्रिज को रिहैब किया गया था. यह कोई नया ब्रिज नहीं है. जनता इससे बेखबर भी थी.”
उन्होंने आगे बताया, “ऐसे ब्रिज में लोग एक तरफ से जाकर दूसरी तरफ निकलते रहते है. मगर, इस पुल पर लोग काफी देर तक रुके रह गए और जाम की स्थिति बन गई और ओवरलोडिंग बढ़ती चली गई. इस पर जंपिंग की वजह से डायनेमिक लोडिंग भी बढ़ गई और सस्पेंशन टूट गए.”
संस्पेंडर लोड और स्लिपेज की चेकिंग
उन्होंने आगे बताया कि इस तरह के पुल की चेकिंग के समय दो चीजों की मुख्य रूप से चेकिंग होती है. पहला संस्पेंडर का लोड और दूसरा स्लिपेज. इस केस में हो ये भी सकता है कि कोई केबल स्लिप कर गई हो, जिसका लोड दूसरे केबल पर चला गया.
तस्वीरों में भी दिखता है कि पुल के टूटने के काफी देर तक वह ऑक्सीलेशन की वजह से झूलता है. टूटता पुल वाइब्रेशन मोड में चला जाता है. उन्होंने एक बार फिर बताया कि इस पुल के टूटने की वजह ओवरलोडिंग है. इसको सुधारकर आगे की घटना से बचा जा सकता है.
झूला पुल सस्ता और बनाना आसान
पुल की डिजाइन के बारे में प्रो. केके पाठक ने बताया कि इस पुल को केबल ब्रिज भी कहते हैं. ऐसे पुल पूरी दुनिया में केबल के सहारे ही बनाए जाते हैं क्योंकि इनका निर्माण सस्ता होने के साथ ही आसान होता है. मगर, इसमें सावधानी जैसे- रोजाना चेकिंग होते रहने चाहिए. इसका मेंटेनेंस भी होते रहना चाहिए.
हो सकता है कि पुल के किसी सस्पेंडर में जंग लग गई हो. 100 साल पहले जो मेटेरियल लगा, आज वह इस्तेमाल नहीं होता है. वह मटेरियल प्रॉपर्टी अलग थी. इसकी भी चेकिंग हुई की नहीं, यह भी जांच का विषय है. उन्होंने आगे बताया कि ऐसे पुल स्टील रॉड और हाईटेंशन तार से बनते हैं. इन पर मौसम की मार पड़ती है, इसकी भी चेकिंग होती रहनी चाहिए.
ब्रिज इंजीनियरिंग को लेकर प्रो. पाठक ने कही ये बात
पुल बनाने के पीछे की इंजीनियरिंग के सवाल के जवाब में प्रो. केके पाठक ने बताया कि ऐसे पुल के निर्माण में बहुत ही जटिल एनालिसिस होती है. दो टावर से केबल लटकता है और केबल से सस्पेंडर लटकता है. ऐसे पुल में विंड लोड, टेंप्रेचर लोड और इंपैक्ट लोड को ध्यान में रखा जाता है.
सस्पेंशन पुल की उम्र के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा ”अब जितने भी पुल बन रहें हैं, उसकी उम्र करीब 100 साल मानी जाती है. मोरबी पुल को 100 साल से ज्यादा का समय हो चुका था. अगर इसका इस्तेमाल करना भी था, तो लोड घटाकर किया जा सकता था. मगर, फुल लोड पर इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है.
मेंटेनेंस के सवाल के जवाब में प्रो. केके पाठक ने बताया कि IRC में सारे मानक दिए हुए हैं कि कितने वक्त के बाद किस तरह का मेंटेनेंस किया जाता है. मेंटेनेंस में ब्रिज के हर हिस्से की पहले चेकिंग होती है. इस तरह की घटना को प्रोग्रेसिव फेल्योर भी कहते हैं.
सुपर स्ट्रक्चर, सब स्ट्रक्चर, फाउंडेशन सभी की चेकिंग जरूरी: डॉ. सुधीर पटेल
वहीं, ब्रिज एक्सपर्ट IIT-BHU के शोध छात्र डॉ. सुधीर पटेल ने बताया, ”किसी पुल की चेकिंग के दौरान पुल के सभी कंपोनेंट पर ध्यान देना पड़ता है. जैसे सुपर स्ट्रक्चर, सब स्ट्रक्चर, फाउंडेशन और अंडर वाटर भी इंस्पेक्शन किया जाता है. सस्पेंशन ब्रिज में स्टील के कोरेजन यानी जंग लगने की समस्या आती है. इससे स्टील पतला होने लगता है और उस पर दबाव बढ़ने के बाद फेल होता है और दुर्घटना घट जाती है. ऐसे पुल पर मौसम की मार भी पड़ती है.”
डॉ. पटेल ने कहा, ”मोरबी पुल में ओवरलोडिंग और लोगों के उछल कूद करने के चलते इंपेक्ट लोड बढ़ गया. चूंकि पुल की चौड़ाई भी कम थी और पुल निर्माण ब्रिटिश कोड के मुताबिक हुआ था. मगर, उस वक्त जनसंख्या घनत्व कम होने के चलते लोडिंग कम थी और आज ज्यादा है. आज के पेडेस्ट्रियन पुल की IRC मानक लोडिंग 500 केजी प्रति वर्ग मीटर होनी चाहिए. मोरबी पुल में लोड बढ़ गया और मटेरियल कमजोर हो गया, जिसकी वजह से पुल गिर गया.