MCD Election Result: दिल्ली के पार्षदों को कितना मिलता है फंड, कितनी मिलती है सैलरी? क्या है उनका काम… – delhi mcd result 2022 delhi councillor fund for development and salary full details tuta


दिल्ली नगर निगम चुनाव (MCD) के नतीजे आ चुके हैं. लगातार 15 साल तक सत्ता में रहने के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) को इस बार हार झेलनी पड़ी है और अब नगर निगम पर भी आम आदमी पार्टी (AAP) का कब्जा हो गया है. दिल्ली नगर निगम में कुल 250 वार्ड्स हैं. चुनाव से ठीक पहले तक दिल्ली में अलग-अलग तीन नगर निगम थे. लेकिन चुनाव से पहले तीनों का विलय एक निगम बना दिया गया. 

दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के शासनकाल के दौरान साल- 2011 में दिल्ली नगर निगम संशोधन विधेयक को पारित किया गया था. इसके तहत एमसीडी को तीन भागों में बांटा गया. जिसके बाद 2012 में निगम चुनाव अलग-अलग हुए थे. लेकिन अब फिर पूर्वी दिल्ली नगर निगम, उत्तर दिल्ली नगर निगम और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम एक हो गया है. 

पार्षद का कार्यक्षेत्र

इस बार एमसीडी चुनाव (MCD Election) में साफ-सफाई, भ्रष्टाचार, पेयजल और सड़क निर्माण मुख्य मुद्दे थे. इसके अलावा भी कई मुद्दे उछाले गए, लेकिन जनता को जिन चीजों को लेकर हर रोज समस्या झेलनी पड़ती थी. उसे ध्यान में रखकर उन्होंने अपना मत का प्रयोग किया. अब चुन गए पार्षदों की जिम्मेदारी है कि जनता से किए वादों को पूरे किए जाएं.

लेकिन क्या आपको पता है दिल्ली में एक पार्षद को अपने इलाके में विकास के लिए सालाना कितना फंड मिलता है? इसके अलावा लोगों में ये जानने की इच्छी होती है कि पार्षद की कमाई की कहां से होती है? उन्हें कितनी सैलरी मिलती है? एक पार्षद जो इतना आपके एरिया में काम कराने का जिम्मेदार होता है, वो कैसे अपना खर्च चलाता है.

सबसे पहले ये जानने की कोशिश करते हैं कि पार्षद (Councillor) को विकास के लिए कितना फंड मिलता है. अगर बीते वर्षों की बात करें तो दिल्ली नगर निगम तीन हिस्सों में बंटा था. तीनों इलाकों के अलग-अलग मेयर थे. लेकिन अब एक मेयर होंगे. पिछले कार्यकाल की बात करें दिल्ली नगर निगम के पार्षदों के लिए कोई तय फंड निर्धारित नहीं है.

पार्षद को कितना मिलता है फंड? (Councillor Fund in Delhi)

जानकारी के मुताबिक पार्षदों को सालाना 50 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक का फंड मिलता है, लेकिन ये भी निर्धारित नहीं है. पिछले दो वर्षों में कोरोना महामारी की वजह से फंड में कटौती भी की गई थी. काउंसलर को यह फंड अपने क्षेत्र में विकास के लिए मिलता है. आंकड़ों को देखें तो दिल्ली में कुछ पार्षद बीते साल पूरे फंड का इस्तेमाल भी नहीं कर पाए थे. कई बार निगम और दिल्ली सरकार में अलग-अलग पार्टियां होने वजह से फंड को लेकर गतिरोध देखने को मिला था. लेकिन अब दोनों जगहों पर आम आदमी पार्टी की सरकार होगी, तो तस्वीर दूसरी हो सकती है. साथ ही बजट बढ़ाने पर भी विचार किया जा सकता है. 

अगर नगर निगम के कार्य को देखें तो सफाई, पीने के पानी की व्यवस्था करना, सड़क बनाना और मरम्मत करना, सड़कों और गलियों में लाइटिंग, नालियों की सफाई करना, अस्पताल खोलना, आग से सुरक्षा, श्मशान घाट बनवाना, टीके लगाना, जन्म एवं मृत्यु का निबंधन करना, पार्क बनवाना, प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना और लाइब्रेरी का प्रबंध करना है. अगर आमदनी की बाते करें तो नगर निगम को अपने कार्यों के लिए पैसा लोगों द्वारा दिए गए कर (टैक्सों) से मिलता है. 

पार्षद की सैलरी (Councillor Salary in Delhi)

जहां तक पार्षदों की कमाई का मामला है तो इसको लेकर फिक्स डेटा उपलब्ध नहीं है. क्योंकि दिल्ली नगर निगम के पार्षदों को फिक्स सैलरी के तौर पर कुछ नहीं मिलता है. निगम में चुने गए एक पार्षद को हर मीटिंग के 300 रुपये तक मिलते हैं. एक पार्षद की महीने में कम से कम 6 मीटिंग होती हैं. हालांकि, बाकी खर्चों के लिए भी दिल्ली नगर निगम पार्षदों को अलग से पैसे मिलते हैं. जिसे आप भत्ते के तौर पर जानते हैं. राजधानी दिल्ली के लोगों को बेहतर सेवाएं देने के लिए दिल्ली नगर निगम 7 अप्रैल, 1985 को अस्तित्व में आया था.
 

 



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